उपराष्ट्रपति चुनाव में एनडीए की जीत का क्या मतलब है? यहां पढ़ें...
त्वरित खबरें - आभा किंडो रिपोर्टिंग

दिल्ली। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन ने उपराष्ट्रपति पद का चुनाव जीत लिया है। उन्होंने इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी को 152 वोटों के अंतर से हराया। राधाकृष्णन को 452 वोट मिले जबकि रेड्डी के पक्ष में केवल 300 वोट ही पड़े।

मतगणना शाम छह बजे शुरू हुई और करीब एक घंटे में निर्वाचन अधिकारी पी.सी. मोदी ने परिणामों की घोषणा की। कुल 767 सांसदों ने मतदान किया, जिनमें से 752 मत वैध और 15 अमान्य घोषित हुए। संसद के दोनों सदनों के 788 सांसद मतदाता थे, लेकिन सात सीटें खाली रहने के कारण 781 सदस्य मतदान के पात्र थे। मतदान में 98.2% की भागीदारी दर्ज की गई। इस दौरान बीजेडी के सात, बीआरएस के चार, अकाली दल के एक और पंजाब के दो निर्दलीय सांसदों ने मतदान से दूरी बनाई।

दिलचस्प रहा मुकाबला

संख्या बल को देखते हुए राधाकृष्णन की जीत पहले से तय मानी जा रही थी। हालांकि, बी. सुदर्शन रेड्डी की उम्मीदवारी ने मुकाबले को दिलचस्प बना दिया था। कयास लगाए जा रहे थे कि क्रॉस वोटिंग भी हो सकती है, मगर ऐसा नहीं हुआ। यदि हुई भी तो एनडीए उम्मीदवार के पक्ष में ही रही।

इंडिया गठबंधन का दावा था कि उसके पास 324 सांसदों का समर्थन है। मतदान के बाद कांग्रेस ने बताया कि उनके 315 सांसदों ने वोट डाला, लेकिन सुदर्शन रेड्डी को सिर्फ 300 वोट ही मिले। ऐसे में यह सवाल उठ खड़ा हुआ कि या तो कुछ वोट अमान्य हो गए या फिर क्रॉस वोटिंग हुई।

विशेषज्ञों की राय

वरिष्ठ पत्रकार शरद गुप्ता का मानना है कि इस चुनाव का महत्व इसलिए है क्योंकि हाल ही में कॉन्स्टीट्यूशन क्लब के चुनाव में गृह मंत्री अमित शाह समर्थित उम्मीदवार की हार हुई थी। उससे सबक लेते हुए बीजेपी ने इस बार अपने सांसदों को मजबूती से जोड़े रखा और चुनाव प्रबंधन में सफल रही। हालांकि वे यह भी मानते हैं कि असली परीक्षा आगामी बिहार विधानसभा चुनावों में होगी।

पत्रकारों का यह भी कहना है कि एनडीए के भीतर असंतोष या क्रॉस वोटिंग की आशंका के बावजूद बीजेपी ने अपने पक्ष को एकजुट बनाए रखा। वहीं, बी. सुदर्शन रेड्डी तेलंगाना से आते हैं, लेकिन आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की क्षेत्रीय पार्टियों से उन्हें उम्मीद के मुताबिक समर्थन नहीं मिला।

विपक्ष की प्रतिक्रिया

कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने कहा कि इंडिया गठबंधन ने अपनी एकजुटता बनाए रखी और उनके वोट शेयर में 14% की बढ़ोतरी हुई है। पहले यह 26% था जो अब 40% तक पहुंच गया। उनका दावा है कि विपक्ष ने कुछ खोया नहीं बल्कि पाया ही है और यही आने वाले समय में बदलाव की नींव बनेगा।

पृष्ठभूमि और असर

यह चुनाव इसलिए जरूरी हुआ क्योंकि उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने 21 जुलाई को अचानक इस्तीफा दे दिया था। 2022 में हुए चुनाव में धनखड़ ने 528 वोट पाकर विपक्ष की मार्गरेट अल्वा को बड़े अंतर से हराया था।

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस चुनाव के नतीजे दिखाते हैं कि बीजेपी अपने संगठन और प्रबंधन के दम पर सांसदों को एकजुट रखने में सफल रही। हालांकि, बीजेडी, बीआरएस और अकाली दल जैसी पार्टियों का दूरी बनाना यह संकेत भी देता है कि एनडीए को अब पहले जैसी सर्वमान्यता नहीं है।

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