सेंट्रल जेल दुर्ग में हुआ वैदिक भजन-सत्संग  "पश्चाताप से जीवन पवित्र बनता है" – आचार्य डॉ. अजय आर्य
त्वरित खबरें निशा विश्वास ब्यूरो प्रमुख रिर्पोटिंग

सेंट्रल जेल दुर्ग में हुआ वैदिक भजन-सत्संग

"पश्चाताप से जीवन पवित्र बनता है" – आचार्य डॉ. अजय आर्य

दुर्ग, 07 अगस्त 2025।

छत्तीसगढ़ प्रांतीय आर्य प्रतिनिधि सभा एवं दुर्ग आर्य वीर दल के संयुक्त तत्वावधान में सेंट्रल जेल, दुर्ग में एक विशेष भजन-सत्संग एवं वैदिक प्रेरणा कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम ने जेल परिसर को भक्ति, आत्मचिंतन और आत्मशुद्धि के वातावरण से भर दिया।

कार्यक्रम की शुरुआत वैदिक मंत्रोच्चारण, ईश्वर स्तुति और प्रार्थना से हुई।

आचार्य अंकित शास्त्री ने बंदियों को संदेश दिया –

“ध्यान, सकारात्मक चिंतन, सत्साहित्य और व्यायाम से आत्मनिर्माण करें; जेल का समय आत्मपरिवर्तन का अवसर बन सकता है।”

प्रसिद्ध भजन गायक सुकांत आर्य (कासगंज, उत्तरप्रदेश) ने मधुर भजनों के माध्यम से ईश्वर भक्ति और आत्मा की शुद्धता का संदेश दिया।

“ईश्वर की भक्ति से ही जीवन निर्माण संभव है।”

मुख्य वक्ता आचार्य डॉ. अजय आर्य ने भावविभोर कर देने वाले प्रवचन में कहा –

“पश्चाताप के आँसू जीवन को पवित्र करते हैं। सच्चे हृदय से किया गया प्रायश्चित ही आत्ममुक्ति का मार्ग है।”

गीता के संदेशों का उल्लेख करते हुए उन्होंने समझाया –

“हर कर्म का फल निश्चित है – शुभ कर्मों का शुभ और अशुभ का अशुभ परिणाम होता है।”

प्रेरक प्रसंगों ने बंदियों को आत्मचिंतन के लिए प्रेरित किया।

एक कैदी की कथा सुनाई गई जिसने सजा की गिनती छोड़कर आत्मविश्लेषण शुरू किया और आत्ममुक्ति प्राप्त की।

एक अन्य प्रेरक संवाद में बंदी और ईश्वर का संवाद प्रस्तुत करते हुए समझाया गया कि –

“जब तक सच्चा पश्चाताप नहीं होता, तब तक भीतर की सजा खत्म नहीं होती।”

कार्यक्रम में प्रमुख उपस्थिति रहीं –

आचार्य अंकित शास्त्री, समाजसेवी मनोज ठाकरे, डॉ. अजय आर्य, सुकांत आर्य, बहन रबीबाला गुप्ता, तुषार आर्य, कृष्णमूर्ति, कविता, हिमांशु, एवं अनेक प्रहरीगण और बंदीजन।

सेंट्रल जेल अधीक्षक  मनीष सम्भाकर एवं प्रहरी राजेश कुमार साहू की गरिमामयी उपस्थिति और सहयोग के लिए आयोजकों ने हार्दिक आभार व्यक्त किया।

बंदियों को 'सत्यार्थ प्रकाश' की प्रतियाँ वितरित की गईं और वैदिक जीवनशैली अपनाने की प्रेरणा दी गई।

कार्यक्रम का समापन लोकमंगल प्रार्थना, शांति पाठ एवं प्रसाद वितरण के साथ हुआ।

प्रेरक विचार

“पिंजरा चाहे सोने का हो, वह पिंजरा ही रहता है; आत्मा को मुक्ति सत्य विचारों से ही मिलती है।”

“पश्चाताप वह दीप है जो अंधकार को जलाकर उजाले में बदल देता है।”

कार्यक्रम संयोजक मनोज ठाकरे ने अंत में सभी प्रतिभागियों, सहयोगियों एवं जेल प्रशासन का विशेष धन्यवाद ज्ञापित किया।

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