15 मई को वृष संक्रांति : इस पर्व पर सूर्य को अर्घ्य देने और अन्न-जल दान करने की परंपरा
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14 मई 2022

15 मई को सूर्य अपनी उच्च राशि मेष से निकलकर वृष राशि में आ जाएगा। इस दिन वृष संक्रांति मनेगी। इस पर्व पर स्नान, दान, व्रत और पूजा-पाठ का विशेष महत्व होता है। वैशाख महीने में होने वाली सूर्य संक्रांति को ग्रंथों में महत्वपूर्ण पर्व कहा गया है। इस दिन किए गए तीर्थ स्नान से जाने-अनजाने में हुए हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं। इस पर्व पर जरुरतमंद लोगों को भोजन और जल दान करने से बीमारियां दूर होने लगती हैं और उम्र बढ़ती हैं।


वृष संक्रांति पर क्या करें
पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र बताते हैं कि इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर तीर्थ स्नान करना चाहिए। तीर्थ में न जा सकें तो घर पर ही पानी में गंगाजल मिलाकर नहाने से इसका पुण्य मिल जाता है। नहाने के पानी में तिल डालकर स्नान करने से पाप खत्म होते है। इसके बाद उगते हुए सूरज को अर्घ्य दिया जाता है। पानी में तिल मिलाकर सूर्य को जल चढ़ाने से कई गुना पुण्य फल मिलता है।। इस दिन किए गए श्राद्ध से पितरों को संतुष्टि मिलती है। इस पर्व पर सूर्य भगवान की पूजा और व्रत करने की भी परंपरा है।

क्या होती है संक्रांति
सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में जाने को संक्रांति कहा जाता है। 12 राशियां होने से सालभर में 12 संक्रांति पर्व मनाए जाते हैं। यानी अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार हर महीने के बीच में सूर्य राशि बदलता है। सूर्य के राशि बदलने से मौसम में भी बदलाव होने लगते हैं। इसके साथ ही हर संक्रांति पर पूजा-पाठ, व्रत-उपवास और दान किया जाता है। वहीं धनु और मीन संक्रांति के कारण मलमास और खरमास शुरू हो जाते हैं। इसलिए एक महीने तक मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं।

वृष सक्रांति का महत्व
हिंदू कैलेंडर के अनुसार 14 या 15 मई को वृष संक्रांति पर्व मनाया जाता है। सूर्य की चाल के अनुसार इसकी तारीख बदलती रहती है। इस दिन सूर्य अपनी उच्च राशि छोड़कर वृष में प्रवेश करता है। जो कि 12 में से दूसरे नंबर की राशि है। वृष संक्रांति कभी वैशाख तो कभी ज्येष्ठ महीने में आती है।

इस महीने में ही सूर्य रोहिणी नक्षत्र में आता है और नौ दिन तक गर्मी बढ़ाता है। जिसे नवतपा भी कहा जाता है। वृष संक्रांति में ही ग्रीष्म ऋतु अपने चरम पर रहती है। इसलिए इस दौरान अन्न और जल दान का विशेष महत्व है।

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