पहली बार जन्मजात मोतियाबिंद की सर्जरी

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26 सितंबर 2022

जिला अस्पताल में पहली बार जन्मजात मोतियाबिंद की सफल सर्जरी की गई। आधुनिक (विट्रेक्टॉमी) मशीन के बिना अस्पताल के डॉक्टरों ने यह कारनामा कर दिखाया। इसके बाद तीन बच्चों को रोशनी मिल गई। आंखों की विशेषज्ञ और सर्जन डॉ. कल्पना जेफ ने यह ऑपरेशन किया। अन्य चिकित्सक डॉ. संजय बालवेंद्रे ने सहयोग किया। उन्होंने एनेस्थीसिया दिया। इन बच्चों में कोकड़ी निवासी 10 वर्ष का युवराज यादव, 9 वर्षीय अमर यादव और भेड़सर निवासी 5 वर्षीय रसिका सेन शामिल हैं।

रविवार की सुबह पट्टी बदलने के बाद तीनों को छुट्टी दे दी गई है। फालोअप में सात दिन बाद पुन: बुलाया गया है। जन्मजात मोतियाबिंद का यह जटिल ऑपरेशन करने वाली टीम में माया लहरे, विवेक सोनी, शत्रुधन सिंहा, खुशबू स्टेनले, शिवेन दानी, राजू डग्गर, संजय साहू शामिल रहे। ऑपरेशन के बाद 24 घंटे इन मरीजों को रखने के बाद रविवार को छुट्‌टी दे दी गई। वर्तमान में तीनों बच्चे पूरी तरह से स्वस्थ हैं। उनकी आंखों की रोशनी भी आ चुकी है।

जन्म के बाद से ही नहीं थी बच्चों के आंखों की रोशनी ‌‌‌
जिला अस्पताल के डॉक्टरों ने जिन बच्चों को रोशनी दी, उनमें दो स्कूल यूनिफार्म में थे। ऑपरेशन के लिए उसी कपड़े में ओटी के अंदर गए और ऑपरेशन हुआ। यहां तक छुट्टी के बाद स्कूल ड्रेस में ही वे अपने घर गए। ग्रामीण क्षेत्रों में सामान्यत: स्कूल यूनिफार्म में ही बच्चे रहते हैं।

मां-बाप नहीं, प्रधान अध्यापक पिता बने
स्वास्थ्य विभाग से जानकारी मिली कि युवराज व अजय के मां-बाप नहीं हैं। अत्याधुनिक (विट्रेक्टॉमी) मशीन की सुविधाओं वाले अस्पताल पहुंचना इनके लिए नामुमकिन था। ये जहां पढ़ाई कर रहे हैं, वहां के अध्यापक संदीप यादव के ने प्रयास किया, जिससे दोनों को रोशनी मिली है।

मुश्किल ऑपरेशन किया, बच्चों को रोशनी मिली
जिला अस्पताल में ज्वाइन की डॉ. कल्पना जेफ ने जन्मजात मोतियाबिंद के 3 ऑपरेशन किए हैं। सोमवार को पट्टी बदलने के बाद तीनों बच्चों को छुट्टी दे दी गई है। पहली बार जन्मजात मोतियाबिंद की सफल सर्जरी जिला अस्पताल में की गई है। पहले ऐसे केस रायपुर रेफर किए जाते थे। -डॉ. संगीता भाटिया, प्रभारी, अंधत्व निवारण